‘जब हाथ मे स्क्रिप्ट आयी तो लगा सपना पूरा हो गया। उसको पकड़ने का ,उसके पन्ने पलटने का अलग ही एहसास था
‘जामताड़ा’ से लेकर ‘क्रिमिनल जस्टिस’ का सफ़र तय करने वाले बहराइच के आत्म प्रकाश मिश्र किताब पढ़ने के हैं शौकीन,संगीत से भी है काफी लगाव
‘सिनेमा का जो दौर अब चल रहा उसमे नए कलाकारों के लिए अधिक संभावना है। ओटीटी का दौर है ऐसे में युवा अभिनेताओं व मुम्बई में संघर्ष करने वालों के लिए एक दरवाजा खुल चुका है जहां वो अपने टैलेंट का प्रदर्शन कर आगे जा सकते हैं। मुझे लगता है कि फ्रेशर्स के लिए ये सुनहरा दौर है’
फिल्मी चर्चा से बातें करते हुए यह बात कही युवा अभिनेता आत्म प्रकाश मिश्र ने,जो जामताड़ा सीरीज के बाद अभी ‘क्रिमिनल जस्टिस’ में अभिनेता पंकज त्रिपाठी के साथ दिख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के रहने वाले आत्म प्रकाश मुम्बई अपने चाचा के सपोर्ट से आ पाए। शुरुआत से ही कॉमिक्स,लिटरेचर पढ़ने के शौकीन आत्म प्रकाश को उनके चाचा ने अभिनय की दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित किया। उसके बाद वो भोपाल आ गए। भोपाल स्थित स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की पढ़ाई के बाद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी गयी फ़ेलोशिप से उन्होंने थिएटर की एक कार्यशाला अपने गांव में रखीं,हर आयु-वर्ग के लोगों को प्रशिक्षित कर उन्होंने नाटक की प्रस्तुति की। मगर आत्म प्रकाश को ऐसा लग रहा था कि उनको जिस जगह पर पहुंचना है वो अभी बाकी है। थिएटर व फ़िल्म की दुनिया मे काम करने के लिए वो मुम्बई आ गए और यहीं मुम्बई यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला भी ले लिया।
साइंस स्ट्रीम के विद्यार्थी होने के बावजूद आत्म प्रकाश साहित्य की गजब समझ रखते हैं। कुछ अलग व बेहतर करने की जिजीविषा उन्हें मुम्बई खींच लाई। अंग्रेजी नाटकों का मंचन करते हुए वो ‘जामताड़ा’ के ऑडिशन स्टेज तक पहुंचे। अपने अनुभव सांझा करते हुए वो आगे कहते हैं कि-‘ जब ऑडिशन दिया तो खुद में बहुत सन्तुष्ट हुआ। मुझे इस बात की चिंता नही थी कि मुझे सेलेक्शन मिलेगा या नही,मगर अपनी परफॉर्मेंस से मैं खुश था। और आख़िरकार सूचना मिलती है कि मुझे चुन लिया गया’।
‘ पंकज त्रिपाठी जी के साथ काम करना एक सपना था। मुझे यह अंदाजा भी न था कि ‘क्रिमिनल जस्टिस’ में मुझे इतना करीबी किरदार दिया जाएगा। वो एक इंस्टीट्यूट हैं। उनके बोलने-चालने,उठने बैठने और शांत बैठे रहने से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। हर बारीकी को वो बेहतर ढंग से अपने अभिनय में लाते हैं।’
अपनी बात को जारी रखते हुए आत्म प्रकाश कहते हैं कि जब स्क्रिप्ट हाथ मे मिली तो ऐसा लगा इतने दिनों का सपना पूरा हो गया। स्क्रिप्ट को हाथ मे पकड़ने का,उसके पन्नों को पलटने का एक अलग ही एहसास था। वह एहसास शब्द में बयां नही हो सकता।
आत्म प्रकाश ने अपने घर मे एक लाइब्रेरी भी बनाई है। साहित्य के साथ साथ उनकी संगीत में भी गजब की पकड़ है। नाटकों के दौरान उन्होंने लोकगीत व शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे।
आज के वो युवा जो मुम्बई मायानगरी में संघर्ष कर रहे या सपना सँजोये हुए यहां आ रहे उनके लिए आत्म प्रकाश की यह यात्रा प्रेरणादायक है।